शोमा सेन, सुधीर धावले , सुरेन्द्र गड्लिंग, रोना विल्सन और महेश राउत की महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की wss द्वारा भर्त्सना
यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलाएं (WSS) देश भर में नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं पर कठोर दमनकारी कानूनी कार्रवाई के तहत अपनी सक्रीय सदस्य, प्रोफेसर शोमा सेन के साथ-साथ अन्य प्रमुख दलित और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं की मनमाने ढंग से की गयी गिरफ्तारी से स्तंभित है और सरकार के इस कदम की घोर निंदा करती है.
आज, 6 जून 2018 की सुबह 6 बजे प्रोफेसर शोमा सेन, एडवोकेट सुरेन्द्र गड्लिंग, सांस्कृतिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, मानव अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन और विस्थापन विरोधी कार्यकर्ता महेश राउत की गिरफ्तारी नागपुर, मुंबई और दिल्ली जैसे अलग-अलग स्थानों से महाराष्ट्र पुलिस द्वारा की गयी। प्रोफेसर शोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी विभाग की प्रमुख और एक दलित व महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं, एडवोकेट सुरेन्द्र गड्लिंग भारतीय जन वकीलों के संघ आई.ए.पी.एल. के सचिव और सुधीर धावले, मराठी पत्रिका विद्रोही के सम्पादक तथा रिपब्लिकन पैंथर्स के संस्थापक हैं, रोना विल्सन राजनैतिक कैदियों की रिहाई समिति के सचिव हैं और महेश राउत गड़चिरोली की खदानों से प्रभावित ग्राम सभाओं के साथ विस्थापन विरोधी गतिविधियों में कार्यरत रहे हैं और प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो भी रह चुके हैं। इन सभी की गिरफ्तारी जनवरी 2018 में हुए भीमा कोरेगांव के दंगों के मामले में की गयी है। गिरफ्तारी से पहले इन कार्यकर्ताओं को कई तरीके से प्रताड़ित किया गया। अप्रैल में महाराष्ट्र पुलिस द्वारा इनके घरों पर छापे मारे गए। ठीक उसी समय पुणे में कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं – रुपाली जाधव, ज्योति जगताप, रमेश गैचोर, सागर गोरखे और धवाला धेंगले के साथ – साथ रिपब्लिकन पैंथर्स के कार्यकर्ता हर्शाली पोतदार के घरों पर भी छापे मारे गए थे।
31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाडा में ‘एलगार परिषद्’ द्वारा आयोजित कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान कार्यक्रम के दौरान दलित, आदिवासी, मुस्लिम व अन्य पिछड़ी जातियों की एकता की प्रतिक्रया में ये गिरफ्तारियां की गयीं हैं। यह कार्यक्रम भीमा नदी पर कोरेगांव गांव के पास अंग्रजों और पेशवाओं के बीच हुए युद्ध के 200वें साल के अवसर पर रखा गया था। अंग्रेज़ों की फौज में अधिकतर भर्तियां महार जाति समुदाय से थीं और ऐसा माना जाता है कि पेशवाओं के खिलाफ हुई इस लड़ाई में समुदाय के लोगों ने डटकर ब्राह्मणवादी और जातिवादी पेशवा ताकत को चुनौती दी थी। आज फिर से वही युद्ध दुहराया जा रहा है जहां फासीवादी सरकार और उसके नुमाइन्दे ब्राह्मणवादी – जातिवादी व्यवस्था को बचाने के लिए ताकत का इस्तेमाल कर समाज के सबसे शोषित वर्गों की उठती आवाजों को कुचल रहे हैं। इस साल अभियान पर महाराष्ट्र के दक्षिणपंथी संगठनों ने महाराष्ट्र पुलिस के प्रत्यक्ष समर्थन में भगवा झंडों के साथ आक्रामक धावा बोल दिया। इस आक्रमण में एक व्यक्ति की मौत हुई और कई लोग ज़ख़्मी हो गए। जिन नेताओं ने इस हिंसा को उकसाया था उन्होंने अभियान के आयोजकों पर उल्टे केस दर्ज करवा दिए जिसके तहत कई दलित कार्यकर्ताओं और कार्यक्रम सहभागियों की महाराष्ट्र भर में गिरफ्तारियां हुईं।
31 दिसंबर 2017 को पुणे के शनिवारवाडा में ‘एलगार परिषद्’ द्वारा आयोजित कोरेगांव शौर्य दिवस प्रेरणा अभियान कार्यक्रम के दौरान दलित, आदिवासी, मुस्लिम व अन्य पिछड़ी जातियों की एकता की प्रतिक्रया में ये गिरफ्तारियां की गयीं हैं। यह कार्यक्रम भीमा नदी पर कोरेगांव गांव के पास अंग्रजों और पेशवाओं के बीच हुए युद्ध के 200वें साल के अवसर पर रखा गया था। अंग्रेज़ों की फौज में अधिकतर भर्तियां महार जाति समुदाय से थीं और ऐसा माना जाता है कि पेशवाओं के खिलाफ हुई इस लड़ाई में समुदाय के लोगों ने डटकर ब्राह्मणवादी और जातिवादी पेशवा ताकत को चुनौती दी थी। आज फिर से वही युद्ध दुहराया जा रहा है जहां फासीवादी सरकार और उसके नुमाइन्दे ब्राह्मणवादी – जातिवादी व्यवस्था को बचाने के लिए ताकत का इस्तेमाल कर समाज के सबसे शोषित वर्गों की उठती आवाजों को कुचल रहे हैं। इस साल अभियान पर महाराष्ट्र के दक्षिणपंथी संगठनों ने महाराष्ट्र पुलिस के प्रत्यक्ष समर्थन में भगवा झंडों के साथ आक्रामक धावा बोल दिया। इस आक्रमण में एक व्यक्ति की मौत हुई और कई लोग ज़ख़्मी हो गए। जिन नेताओं ने इस हिंसा को उकसाया था उन्होंने अभियान के आयोजकों पर उल्टे केस दर्ज करवा दिए जिसके तहत कई दलित कार्यकर्ताओं और कार्यक्रम सहभागियों की महाराष्ट्र भर में गिरफ्तारियां हुईं।
3 जनवरी को हुई हिंसा के पश्चात दलित, मुसलमान, अन्य पिछड़ी जातियों के विभिन्न संगठनों ने एकजुट होकर महाराष्ट्र बंद की अपील की और हिंसा की घटनाओं तथा हिंदुत्ववादी ताकतों की भूमिका की भर्त्सना भी की। बाबासाहेब आंबेडकर के पोते और भारिपा बहुजन महासभा के प्रकाश आम्बेडकर के नेतृत्व में यह बंद पूरे महाराष्ट्र में किया गया। शांतिपूर्वक तरीके से किये जा रहे इस बंद के दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने 5000 से अधिक लोगों, अधिकतर दलितों को गिरफ्तार किया। कई कार्यकर्ताओं को उनके घरों से उठाया गया यहां तक कि बच्चों की भी गिरफ्तारी हुई. मीडिया ने इन खबरों को दिखाया तक नहीं। यह मीडिया की सामंतवादी और जातिवादी सोच को दर्शाता है और यह साबित करता है कि देश का मीडिया शोषित वर्ग की आवाज़ को उठाना नहीं चाहता और वह निहित स्वार्थों के साथ है. इस आन्दोलन को तोड़ने और आन्दोलनकारियों में भय पैदा करने के लिए राज्य ने कठोर कानूनी कार्रवाई का इस्तेमाल किया।
जिन लोगों ने वास्तव में भीमा कोरेगांव में हुए कार्यक्रम में दंगा किया उनके साथ अलग बर्ताव किया गया। जैसे शिव प्रतिष्ठान नामक संगठन के नेता संभाजी भिड़े, जिसने दंगा करवाने में मुख्य भूमिका निभाई और जिस पर अनुसूचित जाति एवं जनजाति (प्रताड़ना की रोकथाम) कानून और आर्म्स एक्ट में भी केस दर्ज है, राजनैतिक नेताओं की कृपा से आज भी छुट्टा घूम रहा है और अपनी करतूतों पर तारीफ बटोर रहा है। हिन्दू एकता अघाड़ी के मिलिंद एक्बोटे को मार्च 2018 में गिरफ्तार तो किया गया पर एक माह के अन्दर ज़मानत पर छोड़ भी दिया गया। एल्गार परिषद् के कार्यकर्ताओं के घरों पर लगातार छापे मारे गए – उनके लैपटॉप, कंप्यूटर, पेन ड्राइव, फोन ले लिए गए जिसमें संभाजी भिड़े जैसे दंगाखोरों के खिलाफ सबूत मौजूद थे। अब उन कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार कर नक्सलवादी बताने की कोशिश की जा रही है जो एल्गार परिषद् के कार्यक्रम में मौजूद ही नहीं थे। देश के दलित, आदिवासी, मुस्लिम और महिलाओं पर हमला करके राजकीय सत्ता हिंदुत्ववादी ताकतों को संरक्षण देने में लगी है। कोरेगांव गांव की एक दलित लड़की पूजा साकल की अपने घर के कुंए में अजीब परिस्थितियों में मौत हो जाना इसी ओर संकेत करता है। इस मौत की जांच पड़ताल करने की बजाय पुलिस प्रशासन ने गांव के सवर्णों के साथ मिलकर कोरेगांव की दलित बस्ती को उजाड़ने की भरसक कोशिश की।
इस बार हुई गिरफ्तारियों का सिलसिला साफ दिखाता है कि जो भी दलितों, मुसलामानों, आदिवासियों और महिलाओं के लिए आवाज़ उठायेगा उसे निशाना बनाया जाएगा। इन गिरफ्तारियों का मकसद दलित आन्दोलन की रीढ़ तोड़ना भी है ताकि जातिव्यवस्था पर सवाल न उठाये जा सकें। अनुसूचित जाति एवं जनजाति (प्रताड़ना की रोकथाम) कानून में बदलाव करने से लेकर चंद्रशेखर आज़ाद रावण को रासुका जैसे हैवानी कानून के अंतर्गत बंद करने तक की घटनाएं दर्शाती हैं कि सरकार उन सभी कार्यकर्ताओं को निशाना बनायेगी जो जाति व्यवस्था के खिलाफ काम कर रहे हैं। एक तरफ तो भीमा कोरेगांव में हिंसा उकसाने वालों को शह दी जा रही है और दूसरी तरफ उन सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों और वकीलों को गिरफ्तार किया जा रहा है जो इन हिन्दुत्ववादी ताकतों की बढ़त रोकने के लिए आवाज उठा रहे हैं। हमें यह भी याद रखना होगा कि थूथिकुदी से लेकर कलिंगनगर और गढ़चिरोली से लेकर दिल्ली तक आम लोग सरकार की अमानवीय और लोकविरोधी नीतियों के खिलाफ खड़े हुए हैं इसलिए सरकार चाहती है कि विरोध करने वाली आवाज़ों को कुचल दिया जाए पर फिर भी हमें हिम्मत कर संगठित रूप से इस फांसीवादी सरकार के खिलाफ संघर्ष करना होगा और इन गिरफ्तारियों का पुरजोर विरोध करना होगा।
WSS प्रोफेसर शोमा सेन और अन्य सभी गिरफ्तार हुए साथियों के साथ एकजुट खड़ी है और मांग करती है कि:
शोमा सेन, सुधीर धावले, सुरेन्द्र गड्लिंग, रोना विल्सन और महेश राउत को तुरन्त बिना शर्त रिहा किया जाए;
एलगार परिषद के समर्थक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों पर राजकीय दमन और उत्पीड़न तुरन्त ख़त्म हो;
भीमा कोरेगांव में दलित, आदिवासी, मुस्लिम, अन्य पिछड़ी जातियों पर हुई जघन्य हिंसा की घटनाओं की उच्चस्तरीय जांच हो;
दंगे उकसाने और अनुसूचित जाति एवं जनजाति (प्रताड़ना की रोकथाम) कानून की अवहेलना के आरोपी संभाजी भिड़े की तुरंत गिरफ्तारी की जाए और मिलिंद एकबोटे की ज़मानत वापस ली जाए.
यौन हिंसा और राजकीय दमन के खिलाफ महिलाएं (WSS)
संयोजक : अजिता, निशा, रिनचिन और शालिनी