हाथरस में दलित लड़की के साथ हुई बलात्कार की घटना व उसकी जघन्य हत्या के बाद, पीड़ित परिवार के साथ डॉक्टर राजकुमारी बंसल जिस निर्भीकता और साहस के साथ खड़ी हुईं उन पर देश भर की मीडिया ने जिस तरह की फर्ज़ी और झूठी खबरें चलाईं उसके विरोध में हम सभी सामाजिक कार्यकर्ता, प्रोफेशनल व तमाम संगठन, जो जातिगत और यौनिक हिंसा का विरोध करते हैं, डॉ. राजकुमारी बंसल के समर्थन में एकजुट हैं। उनकी निर्भीकता व मानवीय प्रयास के लिए हम उन्हें सलाम करते हैं।
विगत 24 अक्टूबर 2020 को मध्य प्रदेश महिला मंच, छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच, एनएफआईडब्ल्यू (मध्य प्रदेश), नागरिक अधिकार मंच, डब्ल्यूएसएस (मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़) के प्रतिनिधियों ने डॉ. राजकुमारी बंसल से जबलपुर में उनके घर पर मुलाकात की।
इस माह की शुरुआत में कुछ मीडिया चैनलों व अखबारों में डॉ. राजकुमारी बंसल के संदर्भ में प्रसारित व प्रकाशित झूठी, गैर-संवेदनशील, मनगढ़ंत, हिंसक खबरों ने डॉ. राजकुमारी के पीड़ित परिवार के प्रति सहयोगपूर्ण मानवीय प्रयासों को आघात पहुंचाया है जिसकी हम निंदा करते हैं। हमारे इस प्रस्ताव के प्रति 700 लोगों ने व्यक्तिगत रूप से और अनेक संगठनों ने अपनी सहमति जताई है।
हाथरस की घटना यह बताती है कि जातिवाद की जड़ें भारत में कितनी गहरी हैं। जब भी कोई शिक्षित वर्ग, शिक्षक, पत्रकार, डॉक्टर या छात्र इस जातिगत संरचना को चुनौती देते हैं, उसके प्रति अपनी एकजुटता व्यक्त करते हैं और खास तौर पर जब यह किसी महिला के संबंध में होता है तब यह जातिगत समाज संरचना और पितृसत्ता दमन के अपने हथियार और पैने करने लगते हैं।
डॉ. राजकुमारी बंसल से बात करते हुए यह बात साफ तौर पर सुनाई देती है कि हिंसा पीड़ित महिला यदि दलित है और आप उसके साथ खड़े होते हैं तो सवर्ण समाज की प्रतिक्रियाएं और अधिक क्रूर व हिंसक हो जाती हैं।
15 अक्टूबर को ज़ी न्यूज़ पर प्रसारित खबरों में देखा जा सकता है कि हाथरस से लगभग 100 किलोमीटर दूर जबलपुर में डॉ. राजकुमारी बंसल के घर पर हिंदूवादी गुटों ने पत्थर फेंके और शहर में उनके विरोध में रैली निकाली। जबलपुर के एक स्थानीय संगठन द्वारा महिलाओं पर हो रही हिंसा विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें डॉ. राजकुमारी बंसल आमंत्रित थीं। डॉ. राजकुमारी बंसल के उद्बोधन को फोकस ना करते हुए ज़ी न्यूज़ का कैमरा सभा में मौजूद मुस्लिम महिलाओं पर फोकस कर रहा था जबकि यह बात अपने आप में महत्वपूर्ण है कि वे मुस्लिम महिलाएं जो ज़्यादातर घरों से नहीं निकलतीं एक दलित बच्ची के साथ हुई जघन्य घटना के विरोध में और डॉ. राजकुमारी बंसल के समर्थन में उस सभा में उपस्थित हुई थीं। लेकिन उन मुस्लिम महिलाओं की उपस्थिति को फोकस करते हुए चैनल मैं यह बताया गया कि किस तरह डॉ. बंसल के तबलीगी जमात से संबंध है। इसी समय अन्य मीडिया चैनलों पर डॉ. बंसल को ‘नक्सल भाभी’ जैसे संबोधन दिए जा रहे थे। इस सबके बीच ना तो डॉ. बंसल की शैक्षणिक योग्यताओं पर बात की गई और ना ही उनकी सामाजिक प्रतिबद्धताओं पर बात की गई।
जब डॉ. राजकुमारी हाथरस में पीड़ित परिवार के साथ थीं उस समय 25 सदस्यों का एक दल जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने भेजा था पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचा। उनका कहना था कि उन्हें घटना की जानकारी लेने भेजा गया है। उनमें कुछ लोग भगवा कपड़े पहने हुए थे और उनका कहना था कि यह देश की बेटी के साथ हुई घटना है। इस तरह घटना के पीछे मौजूद जातिगत कारणों को सिरे से नकार रहे थे। पीड़िता के पिता ने डॉ. बंसल से भी आग्रह किया कि वे उस सरकारी दल से बातचीत करें। बातचीत के दौरान डॉ. बंसल ने घटना के पीछे मौजूद जातीय कारणों, लड़की को गैर-कानूनी तरीके से जलाने व सवर्ण लड़की होती तो क्या उसे भी इसी तरह जला दिया जाता, पुलिस की गैर-कानूनी कार्यवाही आदि पर मूलभूत सवाल उठाए। संभवतः इन्हीं सवालों के चलते लखनऊ मे सत्ता के गलियारों में हलचल पैदा हुई।
9 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी का फोन डॉ. राजकुमारी बंसल के पास आया और उन्होंने डॉ. राजकुमारी की शैक्षणिक योग्यता जाननी चाहिए। डॉ. राजकुमारी ने बताया कि वे डॉक्टर हैं और फॉरेंसिक एक्सपर्ट हैं तब पुलिस अधिकारी ने इस बात को दोहराया और फोन काट दिया। 12 अक्टूबर को पीड़िता के पिता के आग्रह पर राजकुमारी लखनऊ हाई कोर्ट में पीड़िता के परिवार के साथ उपस्थित होना चाहती थीं लेकिन बेबुनियादी आरोपों में उन्हें इस तरीके से उलझाकर रखा गया कि वह लखनऊ नहीं जा पाईं।
डॉ. बंसल बताती हैं कि ‘‘यह मेरे लिए सिर्फ हत्या और बलात्कार का मामला भर नहीं था। यदि ऐसा होता तो मैं 14 सितंबर से 3 अक्टूबर तक वहां जाने के लिए नहीं रुकती, मैं पहले ही वहां पहुंच जाती। लेकिन 3 अक्टूबर को मैंने वहां जाना तब तय किया जब मुझे लगा कि प्रशासन पीड़िता के परिवार को ही दोषी बनाने, उन्हें चुप करने और केस को ढकने में लगा हुआ था। उसे देखते हुए मुझे जरूरी लगा कि मैं पीड़ित परिवार के साथ खड़ी रहूं।’’
डॉ. बंसल बताती हैं कि यूपी पुलिस लगातार पीड़ित परिवार को डराती-धमकाती रही। यहां तक कहा गया कि यदि लड़की कोरोना से मरती तो उसे एक रुपए भी मुआवज़ा नहीं मिलता। पहले तो एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई और फिर पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को निलंबित कर दिया। हमारे देश में हर लड़की के लिए बलात्कार का अर्थ अलग है। निर्भया मामले में पीड़िता को इलाज के लिए सिंगापुर भेजा गया और यहां लड़की को एम्स तक में भर्ती नहीं किया गया।
जैसा कि हमेशा होता है सत्ता पर सवाल उठाने वालों के चरित्र, उनकी शिक्षा, उनके व्यवहार, उनके आचरण, उनके काम पर संदेह किया जाने लगता है ऐसा ही डॉ. बंसल के साथ हुआ।
एमबीबीएस पूरा करने के बाद, डॉ. राजकुमारी बंसल ने ऑप्थेलमिक मेडिसिन एंड सर्जरी (DOMS) में डिप्लोमा किया, इस के बाद उन्होंने सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल से फार्माकोलॉजी में एमडी की । वर्तमान में इसी मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक डिपार्टमेंट में डॉक्टर हैं । वे अंबेडकरवादी बुद्धिस्ट हैं। डॉ. बंसल ने सैकड़ों नेत्र शिविर लगाए हैं। सामाजिक कार्य में लगातार लगी रहती हैं, खास तौर से लड़कियों की शिक्षा को लेकर। लॉकडाउन के समय राशन वितरण करने में लगी रहीं। उनका कहना है कि ‘‘मैंने सिर्फ डॉक्टर बनने के लिए शिक्षा हासिल नहीं की। यदि मैं अन्याय के विरुद्ध नहीं बोलती हूं तो मेरा शिक्षित होना बेकार है?’’ ऐसे कितने डॉक्टर, कितने शिक्षक होंगे जिनकी प्राथमिकताओं में सामाजिक दायित्व भी होंगे।
हम सभी साथी सामाजिक कार्यकर्ता, तमाम संगठन व इस अभियान मे व्यक्तिगत तौर से 700 सहयोगी व अन्य संस्थाएं डॉ. राजकुमारी बंसल के साथ हुई इस तरह की कार्यवाही की घोर निंदा और पुरजोर विरोध करते हैं। डॉ. राजकुमारी बंसल की जाति-विरोधी सोच को सलाम करते हुए, हम मांग करते हैं कि:
जिन मिडिया घरानों ने डॉ. बंसल के काम पर सवाल खड़े किए हैं और उनके बारे में फर्ज़ी व गैर-ज़िम्मेदार खबर फैलाई हैं उन पर तत्काल कार्यवाही हो;
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस अस्पताल द्वारा शुरू की गयी जांच तुरंत बंद की जाए;
- ठाकुर समाज के हर व्यक्ति जिन्होंने रैली में भाग लिया हो या किसी भी तरह आरोपियों के पक्ष में बयान दिया हो या दंगे की धमकी दी हो, उन पर तत्काल सख्त कार्यवाही हो;
- केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन पर जो आरोप लगाए गए हों उनको तुरंत वापिस लिया जाए और उन पर बने केस को खारिज किया जाए;
- पीड़ित परिवार को तुरंत न्याय दिया जाए और पीड़ित के बयान में नामित सभी चार ठाकुरों पर एससी व एसटी प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज (PoA) अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाए;
- एससी व एसटी (PoA) अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पुलिस अधिकारियों और ज़िला मजिस्ट्रेट के खिलाफ मुकदमा चलाया जाए और ज़िला मजिस्ट्रेट व पुलिस अधीक्षक दोनों के खिलाफ अपने कर्तव्य की जानबूझकर उपेक्षा करने के लिए एससी व एसटी (PoA) अधिनियम की धारा 4 के तहत एक स्वतंत्र जांच की जाए;
- पीड़िता के शरीर के जल्दबाज़ी में किए गए दाह संस्कार में शामिल सभी अधिकारियों और दाह संस्कार में मदद करने वाले सभी लोगों के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) तुरंत दर्ज होनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सबूत को मिटाने जैसा है;
- बिना किसी देरी के, उच्च जाति समुदाय, विशेषकर ठाकुर समुदाय, के सदस्यों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए, जो न्याय के लिए दलितों की मांग को कमतर करने के लिए सोशल मीडिया पर धमकी भरे वीडियो बना रहे हैं और साझा कर रहे हैं;
- यूपी के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ (अजय मोहन बिष्ट) को पिछले तीन सालों में राज्य सतर्कता और निगरानी समिति की बैठकें, जो एससी व एसटी (PoA) अधिनियम के तहत होना अनिवार्य हैं, आयोजित न करने के लिए इस्तीफा देना चाहिए।