प्रेस विज्ञप्ति
भारत के 20 से ज़्यादा राज्यों और दुनिया भर के 1,000 से ज़्यादा कार्यकर्ता, शिक्षाविद, सजग नागरिकों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लिखा
हिडमे मरकम की तत्काल रिहाई तथा बस्तर में आदिवासियों पर राज्य द्वारा किए जाने वाले अत्याचार को समाप्त किए जाने की अपील
21 अप्रैल, 2021: एक आदिवासी मानवाधिकार रक्षक और पर्यावरण कार्यकर्ता हिडमे मरकम की मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तारी के 40 दिनों बाद एक हज़ार से अधिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, दुनिया भर के सजग नागरिकों ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को एक याचिका भेजी है जिसमें हिडमे मरकम को तुरंत रिहा करने तथा छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के ख़िलाफ़ दमन के चक्र को समाप्त करने के लिए सक्रिय क़दम उठाने का आह्वान किया है। उन्होंने यह भी अपील की कि हिडमे और अन्य आदिवासी कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ लगाए गए झूठे आरोप हटाए जाएँ और यौन और राज्य हिंसा के सभी मामलों में स्वतंत्र जाँच की जाए। [पूरा पत्र और हस्ताक्षरकर्ताओं की पूरी सूची संलग्न है]
इस घटना की व्यापक रिपोर्टिंग हुई है कि 9 मार्च, 2021 को नंदराज पहाड़ विरोधी खनन आंदोलन में काम कर रहे आदिवासी समुदाय की एक प्रतिबद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता हिडमे मरकम का दंतेवाड़ा पुलिस ने उस समय अपहरण कर लिया जब वो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बस्तर के समेली इलाक़े में जा रही थीं (और बाद में ‘गिरफ़्तार’ के रूप में दिखाया गया था)। बहुत-सी महिलाएँ राज्य के हाथों आदिवासी महिलाओं के बलात्कार और हत्याओं को याद करने और शोक व्यक्त करने के लिए शांति के साथ इकट्ठा हुई थीं। लेकिन विडंबना यह है कि वह दिन राज्य द्वारा किए जा रहे दमन की एक और घटना का गवाह बन गया। वह पिछले 40 दिनों से जेल में हैं।
पत्र में कहा गया है कि हिडमे मरकम तथा अन्य आदिवासियों नंदराज पहाड़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले अडानी प्राइवेट लिमिटेड जैसे निगमों द्वारा एक पवित्र स्वदेशी पहाड़ी के खनन का विरोध कर रही थीं। वह बैलाडिला माइन डिपोज़िट प्रोजेक्ट का भी भी विरोध कर रही थीं क्योंकि इससे स्थानीय परिस्थितिकि और विशेष रूप से स्थानीय वन, भूमि और जल निकायों पर गंभीर संकट उत्पन्न हो जाएगा।। छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच के सदस्य के रूप में, हिडमे छत्तीसगढ़ में कई सार्वजनिक स्थानों और सभाओं में उपस्थित रही हैं, विशेषकर विस्थापन और राज्य दमन के ख़िलाफ़ आदिवासी महिलाओं के अधिकारों के आंदोलन में। उनकी गिरफ़्तारी राज्य द्वारा उन आदिवासी महिलाओं की गिरफ़्तारी की शृंखला की एक कड़ी है जो संवैधानिक और मानव अधिकारों के लिए लड़ रही हैं।
दशकों से छत्तीसगढ़ और मध्य-पूर्वी भारत के राज्यों में वाहियात तथा मनमाने ‘विकास’ परियोजनाओं द्वारा आदिवासी हिंसा का शिकार होते रहे हैं। इन परियोजनाओं के कारण व्यापक पैमाने पर विस्थापन और पर्यावरणीय विनाश का कोई हिसाब-किताब नहीं है, इसमें लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है, और यह सब कुछ कॉर्पोरेट को लाभ पहुँचाने के लिए हो रहा है। स्थानीय समुदाय जो दशकों से शांति से वहाँ रह रहे हैं, न केवल इन जंगलों और पहाड़ों पर अपनी जीविका के लिए निर्भर हैं, बल्कि उन पहाड़ों और जंगलों की रक्षा भी करते हैं, खानों और उद्योगों के निर्माण के लिए उन्हें हिंसक रूप से कुचल दिया गया है। लेकिन वे विरोध करना जारी रखे हुए हैं, और लोकतांत्रिक तरीक़े से अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
हिडमे की ग़लत ढंग से गिरफ़्तारी की पूरी तरह से निंदा करते हुए, मुख्यमंत्री से अपील किया गया है:
क. हिडमे मरकम को रिहा किए जाए और यूएपीए सहित उनपर लगाए गए सभी आरोपों को निरस्त किया जाए।
ख. पर्यावरण, आदिवासी और अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में आदिवासी ग्रामीणों, विशेष रूप से महिलाओं के साथ ‘नक्सलवाद का मुक़ाबला करने’ की आड़ में अत्याचार रोका जाए।
ग. सभी संभावित विनाशकारी परियोजनाओं को रोका जाए जो आदिवासियों को विस्थापित करती हैं और पर्यावरण तथा आदिवासी समुदायों के साथ होने वाली बातचीत को ख़तरे में डालती हैं।
घ. लोन वरातु और जिला रिज़र्व गार्ड्स फ़ोर्स (DRGF) जैसी असंवैधानिक संस्थाओं की संदिग्ध योजनाओं को तुरंत निरस्त किया जाए।
ङ. यौन हिंसा और कावासा पांडे की कथित “आत्महत्या”, नंदी के बलात्कार और मौत, भीम मंडावी के बलात्कार और हत्या और अन्य युवा महिलाओं के साथ पुलीस द्वारा की जाने वाली यौन हिंसा की जाँच के लिए एक स्वतंत्र और उच्च-स्तरीय जाँच कमिटि बनाई जाए। बस्तर की महिलाओं पर पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा की जा रही भारी हिंसा तथा यौन हिंसा को तत्काल समाप्त किया जाए।